LokTantri Jatra

लोकतंत्री जात्रा में ‘साथी-समाज’ और ‘सहज लोकतंत्र’
अपने देश-समाज का लोकतंत्र आज़ादी की लड़ाई की कोख से निकला है | स्वतंत्र भारत का भविष्य कैसा होगा ,यही आज़ादी की लड़ाई लड़ने वालों का अपने –अपने तरह से प्रेरणा-स्रोत रहा है | अंगरेजों के जाने के बाद जिस संविधान की स्थापना हुई,उसके साथ सुलूक भी सबका एक जैसा नहीं है | देश के लोकतांत्रिक ताने-बाने के भीतर गतिमान भाव-व्यापार की कुछ बुनियादी दिक्कतें हैं, जिन्हें इस ‘लोकतंत्री धाम’ के थापक जनार्दन धामिया ने समय-समय पर व्यक्त किया है | अपने आस-पास के जीवन के बीच ही जनार्दन धामिया का मन-मस्तिष्क क्रियाशील होता रहा है |
‘लोकतांत्रिक-स्वधर्मे निधनं श्रेय :’
में यही भाव-व्यापार एक साथ पुस्तक आकर में भी नील कमल प्रकाशन , गोरखपुर की ओर से प्रकाशित हुआ है | इस पुस्तक के प्रकाशन से संवाद की एक स्थिति बन गयी है और आज के दौर में इस संवाद की बड़ी महत्ता है | लोकतंत्र में संवादी –जन ही कहीं पहुँचते हैं | अलग-थलग वाली गतिविधियाँ लोकतंत्र के विपरीत ले जाती हैं |
एक संवाद-मंच की तलाश में इस धामिया ने ‘लोकतांत्रिक-स्वधर्मे निधनं श्रेय :संवादी-जन के साथ ‘ नामक पुस्तिका ‘भारतीय सार्वजनिक जीवन सम्पोषण धाम ’ की ओर से प्रकाशित की है | इस सिलसिले को आगे बढ़ाने की गरज से अब ‘लोकतंत्री-जात्रा’ जारी है | समाज को परिवर्तित करने वाली धारा में लम्बे समय से लगे रहने के चलते ही यह बात समझ में आ सकी कि लोकतंत्र की राह से काम को अंजाम तक पहुँचाने की ओर बढ़ा जाय |
भारत वर्ष रीती-रिवाज तथा परम्परा के मामले में अति प्राचीनता वाला देश है | इस रिक्थ HERITAGE को आँख मूँदकर आज के लोकतंत्र वाले जीवन में प्रयुक्त करते रहना एक बड़ा अनर्थ है , जो जाने-अनजाने चल रहा है | सामंती-संस्कारों को शासन-व्यवस्था के लोकतंत्री लबादे में छिपाकर जीना विदूषकत्व का ही प्रहसन है, जो चल रहा है लोकतंत्र की महान नाटकीयता वाले रूप में |
पुराने वाले जीवन के केन्द्र में जो मूल्य-मान्यताएँ स्थापित रही हैं , उन्हें ही लोकतांत्रिक दौर में भी जो लोग चलना चाहते हैं , उनसे कुछ उम्मीद रखना बेकार है | ऐसों की तो कलई उतरनी चाहिए | हाँ , जिनको नया जीवन पाना है, उनका धर्म है – पुराने से आगे वाली रचना में लगना | इस नए की चाहत में आगे बढ़ने से लोकतंत्र के मूल्य ही जीवन के परम मूल्य बन जायेंगे, ऐसा जनार्दन धामिया का विश्वास है | परन्तु किसी अकेले के ही बस की बात यह नहीं है | इसी समझ के चलते ‘लोकतंत्री -जात्रा’ में लगना हुआ है | विचार, संस्कृति और उत्सव से ही नई सामूहिकता सजेगी |
मूल्य-मान्यताओं की पुरानी जीवन-शैली तथा जनसामान्य में विद्यमान बाप-दादा वाली बातों की टेक को कम करके आँकना नादानी ही है | इसने बड़े-बड़ों को गतानुगतिकता में फ़ांस रखा है | परिवर्तनकामी राहुल सांस्कृत्यायन ने जड़ता के लिए ही ‘तुम्हारी छय’ का शाप दिया है ; और बनी आ रही ‘दिमागी गुलामी’ को उखाड़ फ़ेकने के लिए ‘भागो मत दुनिया को बदलो’ वाली बात भी अपने समय के दयानतदारों तक पहुंचानी पड़ी |
विकल्पहीनता या नासमझी के चलते जो लोग पुराने की फ़ांस में पड़े हुए हैं , उन्हें इस ‘लोकतंत्री - जात्रा’ में ले आना है | जो आयेंगे,उनका काम होगा नया इतिहास बनाना, जो पूर्ण होगा | पुराण-पंथ हटाने से ही है | समझ लेने या चाह लेने मात्र से लोकतंत्र में यह एकाएक नहीं हो जायेगा | हाँ ,कुछ लोग जब आगे बढ़ेंगे, तो कारवां जरुर ही चल निकलेगा |
परिवर्तनकारी पहल के प्रति लोगों की दुर्भावना भी बन सकती है | आज लोकतांत्रिक-समाज के निर्माण वाला मोर्चा बहुत सूझ-बूझ तथा कुर्बानी की दरकार वाला बना हुआ है | जिनकी लोकतांत्रिक चाहत है, उन्हें अपने मोर्चे की फ़तह खातिर लोगों की हिस्सेदारी जुटाते हुए इस जंग में जुड़ना है | लोकतंत्र जिनके काम का है , वे यह जानते ही नहीं कि जीवन में इससे क्या-क्या पाया जा सकता है | जो लोकतंत्र के अलम्बरदार बने हुए हैं, उनके प्राणों की पुकार में है सत्ता | सत्ता का यह नाच जीतो सब धरती आकाश की थिरकन में लयबद्ध है |
SATHI SAMAJ

हमारी यह लोकतंत्री-जात्रा चल सकेगी ‘साथी-समाज’ की ही बदौलत | इसमें अन्य को अपने सामान मानने का भाव बुनियाद में रहेगा | अभी तो विभेद के बीच ही रिश्तों की गाँठ जुड़ी है | यह गाँठ रिश्तों में चलने वाले जीवन को असह्य तथा सड़ांधयुक्त बनाने लगी है | हम इस बात से अवगत हैं कि हर तरफ असमानता का ही प्रसार है | समता-सृजन का एक महाकाव्यात्मक दौर आरम्भ होना है, जो विध्यमान ‘विसाथी-समाज’ वाली गति को पिछाड़ देने के दम पर ही आगे बढ़ेगा |
साथ का मजा ही और है; और अकेलेपन का दुःख तो किसी को भी पीस डालने के लिए पर्याप्त है | आज जीवन की स्तिथियाँ ऐसी हैं, जिसमें ज्यादातर लोग अकेलेपन का दंश झेल रहे हैं | इस आलम का एक नायाब तोहफा अपना ‘साथी-समाज’ बन सकता है |
आनन्द अकेले वाली उपलब्धि नहीं है | दूसरे के साथ हुए बिना या दूसरे का साथ पाए बिना कोई आनन्द नहीं बनता | अभी तो और के अधीन हो जाने या अपने अधीन दूसरे को कर लेने का आनन्द लोग पा रहे हैं | इससे आगे की गति वाला आनन्द व्यक्ति को सृजित करना है; इसे सिरजना ‘साथी-समाज ’ की अवधारणा में है | कहना चाहिए कि इसी दिशा में बढ़ना ही ‘लोकतंत्री-जात्रा’ है |
‘विसाथि’ वाले दुःख से जो ज़ार-बेज़ार हैं ; वे ‘साथी-समाज’ में आ मिलें | यहाँ वाला अपनापन तो अकेलेपन वाले हज़ारझार दुखों की दवा साबित हो सकता है | बस, कुनबे में आकण्ठ डूबे होने से निकलने तथा विशिष्ट बनते जाने वाले मनोभाव को बदलने की नीयत मान के भीतर हो |
‘साथी-समाज’ के सदस्य ‘लोकतंत्री-जात्रा’ वाले दमकू परिधान में, साथ-साथ आओ... वाला आह्वान देते आगे बढ़ेंगे | जात्रा के दौरान अपने हिस्से वाला खर्च भी ‘साथी-समाज’ का सदस्य वहन करेगा |
सांस्कृतिक जुलूस में साधारणतया शामिल होने वाले और ‘लोकतंत्री-जात्रा’ की सामूहिक गतिविधियों में लगने वाले लोग ‘संगमनी समाज’ बनायेंगे |
‘संगमनी समाज’ का बनना तथा बलशाली होना ही ‘लोकतंत्री जात्रा’ की उपलब्धि होगी | इसको बनाने और बढ़ाने वाला विचार-विमर्श और साथ चलने एवं पकाने-खाने-गाने में एकजुटता ही सामाजिक बदलाव लाएगी | इसमें जुटकर/ अपनी आस्था जाता कर/संसाधन या धन प्रदान कर लोग कार्य आगे बढ़ाएं, यह हमारी चाहत है |
आयोजन का सहभागी बनने हेतु आमंत्रण –
जो लोग हमारे उपर्युक्त भाव-विचार वाली लोकतंत्री-जात्रा की कार्य-योजना को देश-समाज में क्रियाशील देखना चाहते हैं, वे ‘लोकतंत्री-धाम’ के साथ लगने का मन बनाकर काम हाथ में लें |
हमारी लोकतंत्री-जात्रा से जुड़ने के मुख्य सरोकार हैं :-
१- सांस्कृतिक जात्रा की अगुआई हेतु अपनी रचनात्मक-प्रतिभा को जमीनी जीवन के नियोजन में लगाएँ – रचें और प्रकाशित करें |
२- ‘साथी-समाज’ में शामिल होकर लोकतंत्री-जात्रा को ऊर्जावान बनाएँ |
३- लोकतंत्री-जात्रा हेतु जुलूस निकालकर लोगों के बीच जाने की हमारी संकल्पना है| इसके लिए संसाधन देने/जुटाने के संहर्ता बनें | संहर्ता की पहल , सूझ-बूझ व क्रियाशीलता से लोग सहज लोकतंत्र के रचयिता बनेंगे |
४- लोकतंत्री-जात्रा हेतु ‘संभार-निधि’ खड़ा करना एक बड़ी आवश्यकता है | इस सन्भर्ता-निकाय के सदस्य बनें |
५- ‘संगमनी-उछाह’ का आयोजन लोकतंत्री जात्रा का मेरुदंड बनेगा | इसके संहर्ता बनें | अपना या घर-परिवार का नाम जोड़कर सन्भर्ता बनें |
६- इस ‘लोकतंत्री-जात्रा’ के ‘संगमनी-समाज’ में आ मिलें | इससे अपने भारतीय जीवन की नई मंजिल खड़ी होगी |